बाबूचंद आईसीयू में भर्ती था और अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था।

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बाबूचंद आईसीयू में भर्ती था और अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था। . . . . अंतिम समय में वह गीता पाठ सुनना चाहता था, जिसके लिए एक पंडित को बुलाया गया। . . . . पंडित ने जैसे ही पलंग के पास खड़े होकर पाठ करना शुरू किया, बाबूचंद की तबीयत और बिगड़ने लगी। . . . . वह हांफ रहा था और कुछ कहना चाह रहा था, लेकिन बोल नहीं पा रहा था। . . . . उसने कागज-पेन की तरफ इशारा किया तो उसे एक कागज-पेन दे दिया गया। . . . . बाबूचंद ने कागज पर एक नोट लिखा पंडित को दिया और गुजर गया। . . . . पंडित को लगा कि यह नोट पढ़ने का सही समय नहीं है, इसलिए उसने कागज अपनी जेब में रख लिया। . . . . बाबूचंद का क्रियाकर्म कर दिया गया और उसके बाद शोकसभा आयोजित की गई। . . . . शोकसभा में पंडित को बोलने का मौका दिया गया तो वह बोला, ‘बाबूचंद बेहद नेक इंसान थे। . . . . जब वे अपनी आखिरी सांसें ले रहे थे, तब मैं उनके साथ ही था और उन्होंने अपने आखिरी शब्द मुझे लिखकर दिए थे। . . . . उनकी इच्छा अनुसार आज सबके सामने मै वो नोट पेश कर रहा हु। . . . . पंडित ने वो नोट एक व्यक्ति को दिया और कहा तेज़ आवाज़ से पढकर सबको सुनाइए। . . . . उस व्यक्ति ने नोट लिया और तेज़ आवाज़ में पढ़कर सुनाया। . . . . उन्होंने लिखा, ‘अरे पंडित. तू मेरे ऑक्सीजन पाइप पर खड़ा है हट जा वरना मैं मर जाऊँगा । फिर.............. आज पंडित की शोकसभा है

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