हँस कर कबूल क्या करलीं सजाएँ मैंनेहँस कर कबूल क्या करलीं सजाएँ मैंनेज़माने ने दस्तूर ही बना लिया, हर इलज़ाम मुझ पर लगाने का
वो अक्सर मुझ से पूछा करती थीवो अक्सर मुझ से पूछा करती थी, तुम मुझे कभी छोड़ कर तो नहीं जाओगेआज सोचता हूँ कि काश मैंने भी कभी पूछ लिया होता
गुज़रते लम्हों में सदियाँ तलाश करतl हूँगुज़रते लम्हों में सदियाँ तलाश करतl हूँये मेरी प्यास है,नदियाँ तलाश करतl हूँयहाँ लोग गिनाते है खूबियां अपनीमैं अपने आप में खामियां तलाश करतl हूँ
मुझे ना सताओ इतना की मैं रुठ जाऊ तुमसे मुझे ना सताओ इतना की मैं रुठ जाऊ तुमसे ...मुझे अछा नहीं लगता अपनी सासों से जुदा होना ...
अय दिल ये तूने कैसा रोग लियाअय दिल ये तूने कैसा रोग लियामैंने अपनों को भुलाकर, एक गैर को अपना मान लिया