घर का रास्ता भी मिला था शायदघर का रास्ता भी मिला था शायद..घर का रास्ता भी मिला था शायदराह में संग-ए-वफ़ा था शायदइस क़दर तेज़ हवा के झोंकेशाख़ पर फूल खिला था शायदजिस की बातों के फ़साने लिखेउस ने तो कुछ न कहा था शायदलोग बे-मेहर न होते होंगेवहम सा दिल को हुआ था शायदतुझ को भूले तो दुआ तक भूलेऔर वही वक़्त-ए-दुआ था शायदख़ून-ए-दिल में तो डुबोया था क़लमऔर फिर कुछ न लिखा था शायददिल का जो रंग है ये रंग-ए-'अदा'पहले आँखों में रचा था शायद
इसी से जान गया मैं कि वक़्त ढलने लगेइसी से जान गया मैं कि वक़्त ढलने लगेमैं थक के छाँव में बैठा और पाँव चलने लगेमैं दे रहा था सहारे तो एक हजूम में थाजो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे