फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न थाफांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था..फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न थासामने बैठा था मेरे और वो मेरा न थावो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार सूमैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न थारात भर पिछली ही आहट कान में आती रहीझाँक कर देखा गली में कोई भी आया न थाख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर अजनबीयत के गिलाफ़वर्ना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न थायाद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था
कोई समझाए ये क्याकोई समझाए ये क्या..कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने काआँख साकी की उठे नाम हो पैमाने कागर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालोंरक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने काचश्म-ए-साकी मुझे हर गाम पे याद आती हैरास्ता भूल न जाऊँ कहीं मैख़ाने काअब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूचे मेये नतीजा हुआ ना से तेरे समझाने कामंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ 'इक़बाल'इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का
गुज़रे दिनों की यादगुज़रे दिनों की याद..गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगेगुज़रूँ जो उस गली से तो ठण्डी हवा लगेमेहमान बनके आए किसी रोज़ अगर वो शख्सउस रोज़ बिन सजाए मेरा घर सजा लगेमैं इसलिए मनाता नहीं वस्ल की खुशीमेरे रकीब की न मुझे बददुआ लगेवो कहत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनोंजो मुस्कुरा के बात करे आशना लगेतर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा 'कतील'मुझको सताए कोई तो उसको बुरा लगे
अब किस से कहें और कौन सुनेअब किस से कहें और कौन सुने..अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआइस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों कीवो नाम जो मेरे होंठों पे ख़ुशबू की तरह आबाद हुआउस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गएइक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़ुबानी याद हुआवो अपने गाँव की गलियाँ थी दिल जिन में नाचता गाता थाअब इस से फ़र्क नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआबेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों मेंऐसा तो कभी सोचा भी न था अब जितना बेदाद हुआ
लगता नहीं है जी मेरालगता नहीं है जी मेरा..लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार मेंकिस की बनी है आलम-ए-नापायेदार मेंकह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसेंइतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार मेंउम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिनदो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार मेंकाँटों को मत निकाल चमन से ओ बागबाँये भी गुलों के साथ पले हैं बहार मेंकितना है बदनसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लियेदो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार मेंअनुवादआलम-ए-नापायेदार = अस्थायी दुनियसय्याद = शिकार
ख़ातिर से तेरी याद कोख़ातिर से तेरी याद को..ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देतेसच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देतेआँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देतेअरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देतेकिस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्लतुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देतेपरवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोलेक्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देतेहैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्नादुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देतेदिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्तहम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते