मैं अपनी वफाओं का भरम ले के चली हूँमैं अपनी वफाओं का भरम ले के चली हूँहाथों में मोहब्बत का आलम लेकर चली हूँचलने ही नहीं देती यह वादे की ज़ंज़ीरमुश्किल था मगर इश्क़ के सारे सितम लेकर चली हूँ।
अपनी हर बात रखने का दावा किया उसनेअपनी हर बात रखने का दावा किया उसनेलगा जैसे हकीकत में जीने का बहाना किया उसनेटूट गया कोई अल्फ़ाज़ों से उनके उनको पता तक नहींज़िंदगी सिर्फ नाम नहीं मोहब्बत का यह भी सिखाया उसने
ताबीर जो मिल जाएं तो एक ख्वाब बहुत थाताबीर जो मिल जाएं तो एक ख्वाब बहुत थाजो शख्स गंवा बैठी हूं नायाब बहुत थामैं भला कैसे बचा लेती कश्ती-ए-दिल को सागर सेदरिया-ए- मोहब्बत में सैलाब बहुत था
भूल शायद बहुत बड़ी कर लीभूल शायद बहुत बड़ी कर लीदिल ने दुनिया से दोस्ती कर लीतुम मोहब्बत को खेल कहते होहम ने बर्बाद ज़िन्दगी कर ली
कुछ लोग पसंद करने लगे हैं अल्फाज मेरेकुछ लोग पसंद करने लगे हैं अल्फाज मेरेमतलब मोहब्बत में बरबाद और भी हुए हैं
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बतमालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बतलेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत