मैं अपनी वफाओं का भरम ले के चली हूँ

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मैं अपनी वफाओं का भरम ले के चली हूँ
हाथों में मोहब्बत का आलम लेकर चली हूँ
चलने ही नहीं देती यह वादे की ज़ंज़ीर
मुश्किल था मगर इश्क़ के सारे सितम लेकर चली हूँ।

This is a great अपनी पहचान शायरी.

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