तेरे दर से उठकरतेरे दर से उठकर..तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैंचलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैंअगर तू ख़फा हो तो परवाह नहींतेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैंतब्बसुम ने इतना डसा है मुझेकली मुस्कुराए तो डर जाऊं मैंसम्भाले तो हूँ खुदको, तुझ बिन मगर;जो छू ले कोई तो बिखर जाऊं मैं
मैं खुद भी सोचता हूँमैं खुद भी सोचता हूँ..मैं खुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल हैजिसका जवाब चाहिए, वो क्या सवाल हैघर से चला तो दिल के सिवा पास कुछ न थाक्या मुझसे खो गया है, मुझे क्या मलाल हैआसूदगी से दिल के सभी दाग धुल गएलेकिन वो कैसे जाए, जो शीशे में बल हैबे-दस्तो-पा हू आज तो इल्जाम किसको दूँकल मैंने ही बुना था, ये मेरा ही जाल हैफिर कोई ख्वाब देखूं, कोई आरजू करूँअब ऐ दिल-ए-तबाह, तेरा क्या ख्याल है
ख्वाहिशें हैं कि तेरे दिल मे उतर जाऊंख्वाहिशें हैं कि तेरे दिल मे उतर जाऊंमुद्दतों बाद मैं हद से गुज़र जाऊंकतारों में हैं मेरे कई चाहने वालेतुम कहो तो मैं सब से मुकर जाऊंतुम परेशान हो शायद मेरी हरकतों सेसोचता हूँ कि अब मैं सुधर जाऊंजब भी तुम फूलों सा महकती होदिल करता है कि तुम्हे कुतर जाऊंबहूत महीन हो गया है मेरा मुकद्दरकाश मैं फिर से उभर जाऊं