बुलंदी देर तकबुलंदी देर तक..बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती हैबहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती हैबहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम निकल जाएँतुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती हैयह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकतामैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती हैमोहब्बत में परखने जाँचने से फ़ायदा क्या हैकमी थोड़ी-बहुत हर एक के शजरे में रहती हैये अपने आप को तक़्सीम कर लेता है सूबों मेंख़राबी बस यही हर मुल्क के नक़्शे में रहती है
उस बुलंदी से तुमने नवाजा क्यों थाउस बुलंदी से तुमने नवाजा क्यों था;गिर कर मैं टूट गया कांच के बर्तन की तरह
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता हैआसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता हैभूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है