बहुत पानी बरसता हैबहुत पानी बरसता है..बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती हैन रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती हैयही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थेयही मौसम हैं अब सीने में सर्दी बैठ जाती हैचलो माना कि शहनाई मोहब्बत की निशानी हैमगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती हैबढ़े बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैंकुएँ में छुप के क्यों आख़िर ये नेकी बैठ जाती हैनक़ाब उलटे हुए गुलशन से वो जब भी गुज़रता हैसमझ के फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है..
ऐ सबाऐ सबा, लौट के..ऐ सबा, लौट के किस शहर से तू आती हैतेरी हर लहर से बारूद की बू आती हैखून कहाँ बहता है इंसान का पानी की तरह;जिस से तू रोज़ यहाँ करके वजू आती हैधज्जियाँ तूने नकाबों की गिनी तो होंगी;यूँ ही लौट आती है या कर के रफ़ू आती हैअपने सीने में चुरा लाई है किस की आहें;मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है
रात में कौन वहां जाये जहाँ आग लगीरात में कौन वहां जाये जहाँ आग लगीसुबह अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगीआग से आग बुझाने का अमल जारी थाहम भी पानी लिए बैठे थे जहाँ आग लगीवो भी अब आग बुझाने को चले आएं हैंजिनको ये भी नहीं मालूम कहाँ आग लगीकिसको फुरसत थी जो देता किसी आवाज़ पे ध्यानचीखता फिरता था आवारा धुंआ आग लगीसुबह तक सारे निशानात मिटा डालेंगेकोई पूछेगा तो कह देंगे कहाँ आग लगी
पानी आने की बात करते होपानी आने की बात करते होदिल जलाने की बात करते होचार दिन से मुंह नहीं धोयातुम नहाने की बात करते हो
पानी में विस्की मिलाओ तो नशा चढ़ता हैपानी में विस्की मिलाओ तो नशा चढ़ता हैपानी में रम मिलाओ तो नशा चढ़ता हैपानी में ब्रेंड़ी मिलाओ तो नशा चढ़ता हैसाला पानी में ही कुछ गड़बड़ है
प्यासे को इक कतरा पानी ही काफी हैप्यासे को इक कतरा पानी ही काफी हैइश्क में चार पल की जिंदगानी ही काफी हैहम डूबने को समँदर में भला जाए क्योउनकी पलको से टपका वो आंसू ही काफी है