आँखों से बहता पानी झरना है या है कोई समंदरआँखों से बहता पानी झरना है या है कोई समंदरहर पल क्यों ये लगता है जैसे कुछ टूट रहा है मेरे अंदर
पानी फेर दो इन पन्नों पर ताकि धुल जाए स्याही सारीपानी फेर दो इन पन्नों पर ताकि धुल जाए स्याही सारीज़िन्दगी फिर से लिखने का मन होता है कभी-कभी
बेवफाई उसकी मिटा के आया हूँबेवफाई उसकी मिटा के आया हूँख़त उसके पानी में बहा के आया हूँकोई पढ़ न ले उस बेवफा की यादों कोइसलिए पानी में भी आग लगा कर आया हूँ
वो पानी की लहरों पे क्या लिख रहा थावो पानी की लहरों पे क्या लिख रहा थाखुदा जाने हरफ-ऐ-दुआ लिख रहा थामहोब्बत में मिली थी नफरत उसे भी शायदइसलिए हर शख्स को शायद बेवफा लिख रहा था
इंसान बुलबुला है पानी काइंसान बुलबुला है पानी का, जी रहे हैं कपडे बदल बदल करएक दिन एक 'कपडे' में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर
सो सुख पा कर भी सुखी न होसो सुख पा कर भी सुखी न होपर एक ग़म का दुःख मनाता हैतभी तो कैसी करामात है कुदरत कीलाश तो तैर जाती है पानी मेंपर ज़िंदा आदमी डूब जाता है