वो कभी मिल जाएँ तोवो कभी मिल जाएँ तो..वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिएरात दिन सूरत को देखा कीजिएचाँदनी रातों में इक इक फूल कोबे-ख़ुदी कहती है सजदा कीजिएजो तमन्ना बर न आए उम्र भरउम्र भर उस की तमन्ना कीजिएइश्क़ की रंगीनियों में डूब करचाँदनी रातों में रोया कीजिएपूछ बैठे हैं हमारा हाल वोबे-ख़ुदी तू ही बता क्या कीजिएहम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थेक्यों किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिएआप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमेंआप ही इस का मुदावा कीजिएकहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेरइस तरह हम को न रुसवा कीजिए
अगर यूँ ही ये दिलअगर यूँ ही ये दिल..अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगातो इक दिन मेरा जी ही जाता रहेगामैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़ेमेरी याद तुझको दिलाता रहेगागली से तेरी दिल को ले तो चला हूँमैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगाक़फ़स में कोई तुम से ऐ हम-सफ़ीरोंख़बर कल की हमको सुनाता रहेगाख़फ़ा हो कि ऐ 'दर्द' मर तो चला तूकहाँ तक ग़म अपना छुपाता रहेगा
मेरा जी है जब तकमेरा जी है जब तक..मेरा जी है जब तक तेरी जुस्तजू हैज़बाँ जब तलक है यही गुफ़्तगू हैख़ुदा जाने क्या होगा अंजाम इसकामै बेसब्र इतना हूँ वो तुन्द ख़ू हैतमन्ना है तेरी अगर है तमन्नातेरी आरज़ू है अगर आरज़ू हैकिया सैर सब हमने गुलज़ार-ए-दुनियागुल-ए-दोस्ती में अजब रंग-ओ-बू हैग़नीमत है ये दीद वा दीद-ए-याराँजहाँ मूँद गयी आँख, मैं है न तू हैनज़र मेरे दिल की पड़ी 'दर्द' किस परजिधर देखता हूँ वही रू-ब-रू है
ख़ून से जब जला दियाख़ून से जब जला दिया..ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआफिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआमहफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गईफिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआमुझ को निशात से फ़ुजूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ हैमेरा रफी़क़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआदर्द की कायनात में मुझ से भी रौशनी रहीवैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआसब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गईऔर मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ