बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाताबेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाताजो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जातावो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैंजो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता
दर्द से हम अब खेलना सीख गएदर्द से हम अब खेलना सीख गएबेवफाई के साथ अब हम जीना सीख गएक्या बतायें किस कदर दिल टूटा है हमारामौत से पहले हम कफ़न ओढ़ कर सोना सीख गए।
ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो दर्द की तुम शिद्दतज़ख़्म दे कर ना पूछा करो दर्द की तुम शिद्दतदर्द तो दर्द होता हैं, थोड़ा क्या और ज्यादा क्या
हम मरीज इश्क़ के वो भी थे हकीम-ए-दिलहम मरीज इश्क़ के वो भी थे हकीम-ए-दिलदीदार की दवा दी कुछ पल के लिए फिर दर्द की पुड़िया बांध दी
लोग कहते है हर दर्द की एक हद होती हैलोग कहते है हर दर्द की एक हद होती हैकभी मिलना हमसे हम वो हद अक्सर पार करके जाते हैं