टूटी है मेरी नींदटूटी है मेरी नींद..टूटी है मेरी नींद, मगर तुमको इससे क्याबजते रहें हवाओं से दर, तुमको इससे क्यातुम मौज-मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते रहोकट जाएँ मेरी सोच के पर तुमको इससे क्याऔरों का हाथ थामो, उन्हें रास्ता दिखाओमैं भूल जाऊँ अपना ही घर, तुमको इससे क्याअब्र-ए-गुरेज़-पा को बरसने से क्या ग़रज़सीपी में बन न पाए गुहर, तुमको इससे क्याले जाएँ मुझको माल-ए-ग़नीमत के साथ उदूतुमने तो डाल दी है सिपर, तुमको इससे क्यातुमने तो थक के दश्त में ख़ेमे लगा लिएतन्हा कटे किसी का सफ़र, तुमको इससे क्या
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता हैख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता हैऐसी तन्हाई के मर जाने को जी चाहता हैघर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्योंशाम होती है तो घर जाने को जी चाहता हैडूब जाऊँ तो कोई मौज निशाँ तक न बताएऐसी नदी में उतर जाने को जी चाहता हैकभी मिल जाए तो रस्ते की थकन जाग पड़ेऐसी मंज़िल से गुज़र जाने को जी चाहता हैवही पैमाँ जो कभी जी को ख़ुश आया था बहुतउसी पैमाँ से मुकर जाने को जी चाहता है
आख़िर-ए-शब वो तेरी अँगड़ाईआख़िर-ए-शब वो तेरी अँगड़ाईकहकशाँ भी फलक पे शरमाईआप ने जब तवज्जोह फ़रमाईगुलशन-ए-ज़ीस्त में बहार आईदास्ताँ जब भी अपनी दोहराईग़म ने की है बड़ी पज़ीराईसजदा-रेज़ी को कैसे तर्क करूँहै यही वजह-ए-इज़्ज़त-अफ़ज़ाईतुम ने अपना नियाज़-मंद कहाआज मेरी मुराद बर आईआप फ़रमाइए कहाँ जाऊँआप के दर से है शनासाईउस की तक़दीर में है वस्ल की शबजिस ने बर्दाश्त की है तन्हाईरात पहलू में आप थे बे-शकरात मुझ को भी ख़ूब नींद आईमैं हूँ यूँ इस्म-ब-मुसम्मा 'अज़ीज़'वारिश-ए-पाक का हूँ शैदाई