ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता हैऐसी तन्हाई के मर जाने को जी चाहता हैघर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्योंशाम होती है तो घर जाने को जी चाहता हैडूब जाऊँ तो कोई मौज निशाँ तक न बताएऐसी नदी में उतर जाने को जी चाहता हैकभी मिल जाए तो रस्ते की थकन जाग पड़ेऐसी मंज़िल से गुज़र जाने को जी चाहता हैवही पैमाँ जो कभी जी को ख़ुश आया था बहुतउसी पैमाँ से मुकर जाने को जी चाहता है
This is a great जाने वाले शायरी.