जीना चाहते हैं मगर ज़िन्दगी रास नहीं आतीजीना चाहते हैं मगर ज़िन्दगी रास नहीं आतीमरना चाहते हैं मगर मौत पास नहीं आतीबहुत उदास हैं हम इस ज़िन्दगी सेउनकी यादें भी तो तड़पाने से बाज़ नहीं आती
ज़िन्दगी जैसे एक सज़ा सी हो गयी है !ज़िन्दगी जैसे एक सज़ा सी हो गयी है ग़म के सागर में कुछ इस कदर खो गयी है तुम आ जाओ वापिस यह गुज़ारिश है मेरी शायद मुझे तुम्हारी आदत सी हो गयी है
ज़िन्दगी से पूछिये ये क्या चाहती है!ज़िन्दगी से पूछिये ये क्या चाहती हैबस एक आपकी वफ़ा चाहती हैकितनी मासूम और नादान है येखुद बेवफा है और वफ़ा चाहती है
आखिर ज़िन्दगी ने भी आज पूछ लिया मुझ सेआखिर ज़िन्दगी ने भी आज पूछ लिया मुझ सेकहाँ है वो शक्स जो तुझे मुझ से भी अज़ीज़ था
कितना मुश्किल है ज़िन्दगी का ये सफ़रकितना मुश्किल है ज़िन्दगी का ये सफ़रखुदा ने मरना हराम किया, लोगों ने जीना!