बेनाम सा यह दर्दबेनाम सा यह दर्बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाताजो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जातासब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहेंक्या बात है मैं वक्त पे घर क्यूं नही जातावो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैंजो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जातामैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशाजाते है जिधर सब मैं उधर क्यूं नही जातावो नाम जो बरसों से न चेहरा है न बदन हैवो ख्वाब अगर है तो बिखर क्यूं नही जाताजो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नही जाताबेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता
कहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबरकहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबर..कहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबर शायद न आएमुसाफ़िर लौट कर अब अपने घर शायद न आएक़फ़स में आब-ओ-दाने की फ़रावानी बहुत हैअसीरों को ख़याल-ए-बाल-ओ-पर शायद न आएकिसे मालूम अहल-ए-हिज्र पर ऐसे भी दिन आएँक़यामत सर से गुज़रे और ख़बर शायद न आएजहाँ रातों को पड़े रहते हैं आँखें मूँद कर लोगवहाँ महताब में चेहरा नज़र शायद न आएकभी ऐसा भी दिन निकले के जब सूरज के हम-राहकोई साहिब-नज़र आए मगर शायद न आएसभी को सहल-अंगारी हुनर लगने लगी हैसरों पर अब ग़ुबार-ए-रह-गुज़र शायद न आए
वही आँखों में और आँखों से पोशिदा भी रहता हैवही आँखों में और आँखों से पोशिदा भी रहता हैमेरी यादों में एक भूला हुआ चेहरा भी रहता हैजब उस की सर्द-मेहरी देखता हूँ बुझने लगता हूँमुझे अपनी अदाकारी का अंदाज़ा भी रहता हैमैं उन से भी मिला करता हूँ जिन से दिल नहीं मिलतामगर ख़ुद से बिछड़ जाने का अंदेशा भी रहता हैजो मुमकिन हो तो पुर-असरार दुनियाओं में दाख़िल होकि हर दीवार में एक चोर दरवाज़ा भी रहता हैबस अपनी बे-बसी की सातवीं मंज़िल में ज़िंदा हूँयहाँ पर आग भी रहती है और नौहा भी रहता है
सारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहा!सारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहासदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहान जाने क्या बात थी उन मे और हम मेसारी महफिल भूल गए बस वही एक चेहरा याद रहा
सारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहासारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहासदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहान जाने क्या बात थी उनमें और हम मेंसारी महफिल भूल गए बस वही एक चेहरा याद रहा