फ़िज़ा में महकती शाम हो तुमफ़िज़ा में महकती शाम हो तुमप्यार में झलकता जाम हो तुमसीने में छुपाये फिरते हैं चाहत तुम्हारीतभी तो मेरी ज़िंदगी का दूसरा नाम हो तुम
सिर्फ नज़र से जलाते हो आग चाहत कीसिर्फ नज़र से जलाते हो आग चाहत कीजलाकर क्यों बुझाते हो आग चाहत कीसर्द रातों में भी तपन का एहसास रहेहवा देकर बढ़ाते हो आग चाहत की।