तुम्हारा दीदार और वो भी आँखों में आँखें डालकरतुम्हारा दीदार और वो भी आँखों में आँखें डालकरये कशिश कलम से बयाँ करना भी मेरे बस की बात नही
जिनकी आँखें आँसुओं से नम नहींजिनकी आँखें आँसुओं से नम नहींक्या समझते हो कि उन्हें कोई ग़म नहींतुम तड़प कर रो दिए तो क्या हुआग़म छुपा कर हँसने वाले भी कम नहीं
तेरी याद में ज़रा आँखें भिगो लूँतेरी याद में ज़रा आँखें भिगो लूँउदास रात की तन्हाई में सो लूँअकेले ग़म का बोझ अब संभलता नहींअगर तू मिल जाये तो तुझसे लिपट कर रो लूँ
जो तेरी मुंतज़िर तीन वो आँखें ही बुझ गईजो तेरी मुंतज़िर तीन वो आँखें ही बुझ गईअब क्यों सजा रहा है चिरागों से शाम को
आज ये पल हैआज ये पल है, कल बस यादें होंगीजब ये पल ना होंगे, तब सिर्फ बातें होंगीजब पलटोगे जिंदगी के पन्नों कोतो कुछ पन्नों पर आँखें नम और कुछ पर मुस्कुराहटें होंगी
तलब करे तो मैं अपनी आँखें भी उन्हें देदूतलब करे तो मैं अपनी आँखें भी उन्हें देदूमगर ये लोग मेरी आँखों के ख्वाब मांगते हैं।