कितने शिकवे गिल हैं पहले हीकितने शिकवे गिल हैं पहले हीराह में फ़ासले हैं पहले हीकुछ तलाफ़ी निगार-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँहम लुटे क़ाफ़िले हैं पहले हीऔर ले जाए गा कहाँ गुचींसारे मक़्तल खुले हैं पहले हीअब ज़बाँ काटने की रस्म न डालकि यहाँ लब सिले हैं पहले हीऔर किस शै की है तलब 'फ़ारिग़'दर्द के सिलसिले हैं पहले ही
गिले शिकवे दिल से न लगा लेनागिले शिकवे दिल से न लगा लेनाकभी रूठ जाऊं तो मना लेनाकल का क्या पता हम हो न होइसलिए जब भी मिलूंकभी समोसा और कभी पानी पूरी खिला देना
बनके आंसूं आँख से हम बह सकते नहीं!बनके आंसूं आँख से हम बह सकते नहींदिल में उनके है जगह, पर हम ही रह सकते नहींदुनिया भरके हमसे शिकवे, लाख हमसे हैं गिलेअपने दिल की बात हाये हम ही कह सकते नहीं
क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता हैक्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता हैअब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है
सब शिकवे हमसे कागज पर उतारे ना जाएंगेसब शिकवे हमसे कागज पर उतारे ना जाएंगेकहीं पढ़ने वाला तुम्हें बददुआ ना दे दे
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दीदिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दीकुछ गिले-शिकवे भी कर लेते मुनाजतों के बाद