उसकी कत्थई आँखों मेंउसकी कत्थई आँखों में..उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सबचाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सबजिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैंचादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सबमुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी हैफीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सबआखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते हैकश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब
बरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रखाबरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रखाअब कहते हो कि तुम ने मुझे मार तो रखाकुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं कीहाँ यार के रूख़्सार पे रूख़्सार तो रखाइतना भी ग़नीमत है तेरी तरफ़ से ज़ालिमखिड़की न रखी रौज़न-ए-दीवार तो रखावो ज़ब्ह करे या न करे ग़म नहीं इस कासर हम ने तह-ए-ख़ंजर-ए-ख़ूँ-ख़्वार तो रखाइस इश्क़ की हिम्मत के मैं सदक़े हूँ कि 'बेगम'हर वक़्त मुझे मरने पे तैयार तो रखा