चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँचंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँतेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँनशात = ख़ुशमहव-ए-यास = दुःख में खोन
कूचा-ए-इश्क़ में निकल आयाकूचा-ए-इश्क़ में निकल आयाजिस को ख़ाना-ख़राब होना थाकूचा-ए-इश्क़ = प्यार की गलख़ाना-ख़राब = बर्बा
चलते थे इस जहाँ में कभी सीना तान के हम भीचलते थे इस जहाँ में कभी सीना तान के हम भीये कम्बख्त इश्क़ क्या हुआ घुटनो पे आ गए
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइएबुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइएदिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
जन्नत-ए-इश्क में हर बात अजीब होती हैजन्नत-ए-इश्क में हर बात अजीब होती हैकिसी को आशिकी तो किसी को शायरी नसीब होती है