गलतफहमी से बढ़कर दोस्ती का दुश्मन नहीं कोईगलतफहमी से बढ़कर दोस्ती का दुश्मन नहीं कोईपरिंदों को उड़ाना हो तो बस शाख़ें हिला दीजिए
खुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं मेंखुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं मेंमाँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं मेंतुम चाट पे नहीं आये मैं घर से नहीं निकलयह चाँद बहुत भटकता है सावन की घटाओं में
ये आइने अब घर के सँवरते क्यूँ नहींये आइने अब घर के सँवरते क्यूँ नहींवो ज़ुल्फ़ के सायें बिखरते क्यूँ नहींलगता है ऐसे के बिछड़े हैं अभी-अभीभूले से भी उन्हें हम भूलते क्यूँ नहीं
रुतबा तो खामोशियों का होता हैरुतबा तो खामोशियों का होता हैअल्फ़ाज़ का क्या वह तो मुकर जाते हैं हालात देखकर
बुलबुल के परो में बाज़ नहीं होतेबुलबुल के परो में बाज़ नहीं होतेकमजोर और बुजदिलो के हाथो में राज नहीं होतेजिन्हें पड़ जाती है झुक कर चलने की आदतदोस्तों उन सिरों पर कभी ताज नहीं होते
ज़ायां ना कर अपने अल्फाज किसी के लिएज़ायां ना कर अपने अल्फाज किसी के लिएखामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है