छुप गया अब्र के आँचल में कमर शरमाकरज़ुल्म जब शानों पे वो अपनी सजाकर आयेहाल तू उनको बताना मेरा उनका मुझकोऐ सबा उनसे अगर तू कभी मिलकर आए
मेरी तनहाइयों से कोई पूछेवो दिन फ़ुरकत के किस तरह गुज़ारेसहारा जो तेरी यादों का होताना हरगिज़ सूखते सावन हमारे
उसने सिखाया है हमें मिल के रहो जीजो भी गम ज़माने में हैं हँस के सहो जीइस तरह से मिल के सभी गम भुलाएँ हमउस प्रभु को याद करके सर झुकाएँ हम
हमे क्या_पता था की जिंदगी इतनी अनमोल_हैकफ़न_ओड़कर देखा तो नफरत_करनेवाले भी रो_रहे थे.
मैं अपने साथ कोई काफ़िला नहीं रखता मगर किसी से कभी फ़ासला नहीं रखताअमीरे शहर कि ऊँची हवेलियों कि तरफ़नज़र तो रखता हूँ पर सिलसिला नहीं रखता