करे कोशिश अगर इंसान तो क्या-क्या नहीं मिलता; वो सिर उठा के तो देखे जिसे रास्ता नहीं मिलता; भले ही धूप हो, काँटे हों राहों में मगर चलना तो पड़ता है; क्योंकि किसी प्यासे को घर बैठे कभी दरिया नहीं मिलता।
अभी ना पूछो हमसे मंज़िल कहाँ है; अभी तो हमने चलने का इरादा किया है; ना हारे हैं, ना हारेंगे कभी; यह किसी और से नहीं बल्कि खुद से वादा किया है।
ताश के पत्तों से कभी ताजमहल नहीं बनता; नदी को रोकने से समंदर नहीं बनता; लड़ते रहो ज़िंदगी से हर दिन हर पल क्योंकि; सिर्फ एक बार जीतने से कोई सिकंदर नहीं बनता।
ज़िन्दगी में मुश्किलें तमाम हैं; फिर भी लबों पे एक मुस्कान है; क्योंकि जब जीना हर हाल में है; तो मुस्कुरा कर जीने में क्या नुक्सान है।
क्यों डरना कि ज़िंदगी में क्या होगा; हर वक़्त क्यों सोचना कि बुरा होगा; बढ़ते रहो मंज़िल की तरफ हर दम; कुछ ना मिला तो क्या हुआ, तज़ुर्बा तो नया होगा।
जब टूटने लगे हौंसला तो बस यही याद रखना; बिना मेहनत के कभी तख्तो-ताज हासिल नहीं होते; ढूंढ लेना अंधेरों में भी तुम मंज़िल अपनी; क्योंकि जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते।
तजुर्बे ने शेरों को खामोश रहना सिखाया; क्योंकि दहाड़ कर शिकार नहीं किया जाता; कुत्ते भौंकते हैं अपने जिंदा होने का एहसास दिलाने के लिए; मगऱ जंगल का सन्नाटा शेर की मौजूदगी बयाँ करता है।
जीवन के हर पल को ख़ुशी से बिताओ; आँसुओं को कर जीवन से बाहर हर पल मुस्कुराओ; लाख करे यह दुनिया तुम पर सितम; छोड़ कर पीछे सभी मुश्किलें बस आगे ही बढ़ते जाओ।
जीवन में असली उड़ान अभी बाकी है; हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है; अभी तो नापी है सिर्फ मुट्ठी भर ज़मीन; अभी तो सारा आसमान बाकी है।
यह माना कि ज़िंदगी काँटों भरा सफर है; इससे गुज़र जाना ही असली पहचान है; बने बनाये रास्तों पर तो सब चलते हैं; खुद रास्ते जो बनाये वही तो इंसान है।
जियो इतना कि ज़िंदगी कम पड़ जाये; हँसों इतना कि रोना मुश्किल हो जाये; मंज़िल पर पहुँचना तो किस्मत की बात है; मगर मंज़िल को चाहो इतना कि खुदा देने पर मज़बूर हो जाये।