हसरत-ए-दीदार के लिये जब होइ हमारी तमन्ना; उसकी गली मे हमने मोबाईल की दुकान खोली; मत पूछो अब हालात-ए-बेबसी का, ऐ गालिब; के रोज़ एक नया शख्स उनके नम्बर पे रीचार्ज़ करवानें आता है।
एक पठान दूसरे पठान से: यार एक नया अंडरवियर एक सस्ते देसी साबुन से धोया था, वो छोटा हो गया, अब क्या करूँ? दूसरा पठान: उसी साबुन से नहा ले, पूरा आ जाएगा।
बंटी: ये नया मोबाइल कब लिया? पप्पू: लिया नहीं, गर्लफ्रेंड का उठाया है। बंटी: क्यों? पप्पू: वो रोज-रोज कहती थी कि तुम मेरा फोन नहीं उठाते। बस, आज उठाने का मौका मिल गया।
कोई भी पुराना 'माल' लाइए और नया 'आइटम' ले जाईये! इस तरह के ऑफर देने वालों का क्या कहूँ? . . . . . . . . कमीने, हम शादीशुदा लोगों के दिल के जज़्बातों के साथ खेल जाते हैं।
आज का ज्ञान: स्मार्टफ़ोन शरीर है और इंटरनेट उसकी आत्मा। शरीर चाहे नष्ट भी हो जाये, आत्मा नया शरीर धारण कर लेती है।
लड़की: अब तुम चाहो तो मेरा रिचार्ज मत करवाना। पप्पू: क्यों क्या कोई नौकरी लग गई? लड़की: नहीं, नया बॉयफ्रेंड मिल गया।