अर्ज़ है: इतने खुद्दार थे हम कि कभी स्कूल ना जाते थे ग़ालिब; वो तो लड़कियों के शौक-ए-दीदार ने हमें बैचलर बना दिया।
आज का ज्ञान: हम चाहें कितने भी बड़े कान्वेंट स्कूल में पढ़ लें, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर... गालियाँ हम अपनी मातृ भाषा में ही देते हैं।
ये लड़कियाँ स्कूल तथा कॉलेज लाइफ में कितना भी चिट्टियां कलाइयाँ सुन लें, इनको आखिर में नाचना . . . . . . "पलो लटके जरा सो पलो लटके" पर ही है।
टीचर: क़यामत के दिन ज़मीन फट जाएगी आसमान टुकड़े टुकड़े हो जायेगा! पठान: सर तो क्या उस दिन स्कूल से छुट्टी होगी!
पठान: सुबह-सुबह इन बकरियों को कहाँ ले जा रहे हो? सिन्धी चिढ़ कर, " दिखता नहीं स्कूल ले जा रहा हूँ। पठान: मुझे उल्लू समझ रखा है क्या? आज तो सन्डे है।
मैडम(पप्पू से): बेटा, क्यों रो रहे हो! पप्पू: मैडम जी, स्कूल की बेल टूट गई हैं! मैडम: तो इस में रोने की क्या बात हैं! पप्पू: अब हमारी छुट्टी कैसे होगी!