जाटों से प्रभावित हो कर आज बनियों ने भी आरक्षण लेने के लिये आंदोलन शुरू करने की रूप रेखा तैयार करने के लिए मीटिंग रखी। लेकिन कोई भी बनिया मीटिंग में नहीं पहुंचा... . . . . . . . . . क्योंकि आने-जाने का किराया कौन देगा ये फैंसला नहीं हो पाया और ऊपर से धंधा पहले ही मंदा है।
पत्रकार: कौन हो भाई? जाट: जाट पत्रकार: कितनी ज़मीन है आपके पास? जाट: 122 एकड़ पत्रकार: कौन सी गाडी है आपके पास? जाट: पजेरो पत्रकार: तो और क्या चाहिए? जाट: आरक्षण पत्रकार: क्यों भाई? जाट: मन्ने ना पता भैंस की पुंछ, ज़्यादा सवाल कोणी। आरक्षण चाहिए तो चाहिए बस।
हरियाणा के सभी जाट आरक्षण लेने के लिए सड़कों पर हैं। लेकिन एक ताऊ ये सोच कर परेशान है कि अगर मिल गया तो लेकर कैसे जायेंगे, ट्रैक्टर तो घर छोड़ आये।
पहले गुर्जरों ने पटरियां उखाड़ी और अब जाटों ने। एक बात समझ में नहीं आती ये पटरियों के नीचे 'आरक्षण' कौन दबा जाता है।
जाट: तू व्हाट्सएप्प पर है के? जाटणी: ना, मैं तो म्हारै घरां हूँ। जाट: मैरो मतलब है, व्हाट्सएप्प यूज करै है के? जाटणी: ना रै, मैं तो फेयर लवली यूज करुं हूँ। जाट: अरै बावली, व्हाट्सएप्प चलावै है के? जाटणी: ना रै बावला, मेरै कनै तो साईकल है, बा ही चलाऊँ हूँ। जाट: मेरी माँ, व्हाट्सएप्प चलाणो आवै है के तनै? जाटणी: तू चला लेयी, मैं पीछै बैठ ज्याऊँगी।