कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है; कि जिंदगी तेरी जुल्फों की घनी छाँव में गुजर जाती तो... . . . . . . . . 'होम लोन' लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
सभी को अपनी तकलीफों की पड़ी है, उस व्यक्ति का दर्द समझो जिसकी बीवी, गुर्जरों के पटरीतोड़ पर्दशन की वजह से मायके ना जा पायी हो।
पहले गुर्जरों ने पटरियां उखाड़ी और अब जाटों ने। एक बात समझ में नहीं आती ये पटरियों के नीचे 'आरक्षण' कौन दबा जाता है।