बस इतने में ही कश्ती डुबा दी हमने

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बस इतने में ही कश्ती डुबा दी हमने
जहाँ पहुंचना था वो किनारा ना रहा
गिर पड़ते है लडखडा के कदमों से
जो थामा करता था वो आज सहारा ना रहा

This is a great शायरी कश्ती पर.

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