न ख्वाहिशें हैं न शिकवे हैं अब न ग़म हैं कोई

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न ख्वाहिशें हैं न शिकवे हैं अब न ग़म हैं कोई
ये बेख़ुदी भी कैसे कैसे ग़ुल खिलाती है

This is a great गिले शिकवे शायरी.

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