इन कमबख्त़​ ​जरूर​तो और चाहतों ने मार डाला

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इन कमबख्त़​ ​जरूर​तो और चाहतों ने मार डाला;​
​कभी ​जरूरतें पूरी नही होती​ तो ​कभी चाह​तें​ बिखर जाती है;​
​कभी चाहतें ​के पीछे भागो तो कभी ​जरूरतों पूरी करों;
बस ​इसी में ​तालमेल बिठाते-बिठाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है

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