कौन रोकेगा अब इन बहती हुई आँखों कोक्योंकि रुलाना तो पुरानी आदत है ज़माने कीएक ही शख्स था जो थाम लेता था हमकोपर अब उसे भी आदत हो गयी है आज़माने की
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