कपड़ों को समेटे हुए उठी है मगर

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कपड़ों को समेटे हुए उठी है मगर;
डरती है कहीं उन को ना हो जाए खबर;
थक कर अभी सोए हैं, कहीं जाग ना जाएँ;
धीरे से ओड़ा रही है उनको चादर।
शुभरात्रि!

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