क्या साथ मेरे कोई बला चलने लगी है परछाईं भी अब मुझ से जुदा चलने लगी

SHARE

क्या साथ मेरे कोई बला चलने लगी है परछाईं भी अब मुझ से जुदा चलने लगी है मौसम की अदा मेरी समझ में नहीं आती सरसर की तरह बादे सबा चलने लगी है आती ही नहीं मेरे ख़राबे की तरफ़ वो अब चाल कोई और घटा चलने लगी है पलकें बिछाए हुए बैठा तो इधर हूँ सुनता हूँ उधर ताज़ा हवा चलने लगी है ख़ातिर में नहीं लाते ख़रीदार को अपने लगता है दुकां उनकी ज़रा चलने लगी है शहरों में इसे कैसा मरज़ हो गया आलम अब चार क़दम पीछे वफ़ा चलने लगी है.......

SHARE