इश्क की आबरू हमने बचा लिया अक्सर चिरागे-दिल से मुकद्दर जला लिया अक्सर कौन चाहेगा कि खुद

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इश्क की आबरू हमने बचा लिया अक्सर चिरागे-दिल से मुकद्दर जला लिया अक्सर कौन चाहेगा कि खुद मौत को पीते जाएं दर्द ने सबको शराबी बना दिया अक्सर वफा का आईना जब तेरी नजर से गुजरा तूने अपना हसीं चेहरा छुपा लिया अक्सर करीब रहते हैं जो रातभर इस कलेजे में चांद वो दिन में हमने बुझा दिया अक्सर फूल जितने भी मायूस होके टूट चुके थे उनसे अपना गुलशन सजा लिया अक्सर गुनाह मैं पूरी तसल्ली से किया करता हूं तेरा खंजर इस सीने पे चला लिया अक्सर

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