एक मनचला लङका रोज एक गली से गुजरता था

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एक मनचला लङका रोज एक गली से गुजरता था....! वो हर रोज एक लङकी से कहता था, लङकी नकाब मे होती थी, लडका कहता है, परदेँनशी थोङा परदा उठा मेरी मोहब्बत कुबूल कर जलवा दिखा...! कहता और फिर चला जाता...! दुसरे दिन भी लडँके ने यही कहाँ...! हे परदेँनशी थोङा परदा उठा मेरी मोहब्बत कुबूल कर जलवा दिखा...! तिसरे..दिन भी लङके ने यही कहा हे परदेँनशी थोङा परदा उठा मेरी मोहब्बत कुबूल कर जलवा दिखा...! अगर आज तुने परदा नही उठाया तो मे खुद खुशी कर लुगाँ.....! वो लङकि परदा नही उठाती..! लङका फिर चला जाता है., चौथे दिन लङका नही आता,.. तो लङकि बहुत दुःखी होती है...! लङकी आस पास पुछती है काका वो लङका कहा है जो मुझे रोज तँग करता था...! लोगो ने कहा बेटी उसने तो तुम्हारी याद मे खुदखुशी कर ली...! वो उसकी कब्र है,..! लङकि उसके कब्र पर जाती है..! और कहती है...! ऐ मेरे गुमनाम आशिक लो, मैने अपने रुख से परदा उठा लिया...! जी भर के मेरा दीदार कर ? तो उस कब्र मे से आवाज आती है ! ऐ मेरे खुदा ये तेरी कैसा इँसाफ है..! आज मे परदेँ मे हुँ.. वो बेनकाब आया है....!

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