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शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी। तस्यां ममैतन्माहात्म्त्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वित:।।
सर्वाबाघाविनिर्मक्तो घनघान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।
अर्थात् - शरद ऋतु के नवरात्र में जो मेरी वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे महात्म्य को भक्तिपूर्वक सुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाघाओं से मुक्त होकर घनघान्य एवं पुत्र से संपन्न होगा।