सरम खंड की बाणी रूपु ॥

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सरम खंड की बाणी रूपु ॥
तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥
ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥
तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥

विनम्रता के दायरे में, शब्द सौंदर्य है;
अतुलनीय सौंदर्य के प्रपत्र वहाँ विचारों के हैं;
जिसको वर्णित नहीं किया जा सकता;
जो इसे वर्णित करना चाहे वो पछतायेगा;
मन की सहज चेतना, बुद्धि और समझ वहाँ आकार लेते हैं;
आध्यात्मिक योद्धाओं और सिद्ध, की आध्यात्मिक पूर्णता चेतना वहां आकार लेती है।
गुरु नानक देव जी के प्रकाश पुरब की शुभ कामनायें!

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