मातृभूमी का कंकर कंकर आज महा शंकर बन जाये

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मातृभूमी का कंकर कंकर आज महा शंकर बन जाये
थिरक उठे ताण्डव की गती फिर विश्व
पुनः कम्पित हो जाये
खुले तीसरा नेत्र तेज से अरी दल सारा भस्मसात हो
चमके त्रिशूल पुनः करों में अरी षोणित से तप्तपात हो
जय के नारे गून्जे नभ में जले विजय का दीप घर घर

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