छोडके चले गए अनजान की तरह
जिसे अपनी हाल बता बैठे
वो बड़े नटखट दिल वाले थे
जिससे हम दिल लगा बैठे
शुक्र खुदा का क्या मनाऊं
जब मेरी भलाई नहीं इसमें
दुनियां-जहाँ भी दुश्मन बना
जगह-जगह कांटा बिछा बैठे
क्या क़द्र नहीं मेरी यहाँ
या कद्र नहीं है प्यार का
जिस की जगह दिल थी बहुत
वही सजा हमारा सुना बैठे
अब घुट-घुट के जीना क्या
जहर जुदाई पीना क्या
आँसू के कतरों ने आवाज दिया
क्यों खुद को इस तरह जला बैठे
वो बड़े नटखट दिलवाले थे
जिससे हम दिल लगा बैठे.....