एहसास-ए-आरज़ू को दिल से मिटा न सकोगे

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एहसास-ए-आरज़ू को दिल से मिटा न सकोगे; भूलना चाहो हमें भुला न सकोगे; ये चिराग़-ए-दोस्ती दिल से जलाया हैं हमनें; जल जाओगे मगर इसे बुझा ना सकोगे!

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