अगर है ज़िंदगी तो ज़िंदगी बोलती जाए,
उदासी और तन्हाई मे कोई गीत तो गाए।
ख़्याली आँच पर रक्खी हुई वो केतली खोलो,
कि जिससे भाप के धुएं उड़ें, माहौल गरमाए।
मुझे मु्स्कान के बदले मिलीं आँसू की सौगातें,
मेरे दिल ने ये चाहा था कहीं से रोशनी आए।
कहाँ मज़बूतियों का शोर था बाज़ार से घर तक,
कहाँ कमज़ोरियाँ इतनी कि सन्नाटा भी गिर जाए
न आई नींद तो फिर कैसे आते उसकी बातों में,
दिखाने को तो रातों ने भी सपने ख़ूब दिखलाए।
हवा के ज़ोर के आगे
बहुत चंचल है पानी भी,
कभी मौसम का रुख देखे, कभी लहरों में आ जाए।
तुम्हारी याद ही अपनी
उम्मीदों का सहारा है,
सँभाला है इसी ने जब भी
दिल के ज़ख़्म गहराए।