इन बादलों का मिज़ाज खूब मिलता है मेरे अपनों से

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इन बादलों का मिज़ाज खूब मिलता है मेरे अपनों से;
कभी टूट के बरस जाते हैं;
तो कभी बे-रुखी से गुजर जाते हैं।
सुप्रभात!

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