मनुष्य अनुचित और भ्रष्ट कर्म कर हर क्षण स्वयं को धोखा देता है

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मनुष्य अनुचित और भ्रष्ट कर्म कर हर क्षण स्वयं को धोखा देता है, क्योंकि वर्तमान कर्म ही उसके भविष्य के प्रारब्ध का आधार है। -नीतिसार

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