पानी में नमक घोलकर रोटी खिलाती थी माँ बड़ी ही गरीब थी मगर फर्ज निभाती थी माँ

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पानी में नमक घोलकर रोटी खिलाती थी माँ बड़ी ही गरीब थी मगर फर्ज निभाती थी माँ... रूखे -सूखे ने पैदा की सनक काम करने की अनजाने में नमक का मोल स“ fखाती थी माँ... पोल न खुल जाए रोज रोज भूखा सोने की करवट बदलने में कितना हिचकिचाती थी माँ... सभी को मिल जाती थी फुरसत सुस्ताने की पूरे घर का बोझ अपने कंधों पे उठाती थी माँ... फटे हुए टांट पर भी आ जाती थी नींद खुरदुरे हाथ से मेरी पीठ सहलाती थी माँ...

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