मै लफ्जोँ मेँ कुछ भी इजहार नही करता,
इसका मतलब ये नहीँ कि मै तुझे प्यार नहीँ करता,
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चाहता हुँ मै तुझे आज भी पर,
तेरी सोच मेँ अपना वक्त बे-कार नहीँ करता,
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तमाशा ना बन जाये कही मोहब्बत मेरी,
इसलिऐ अपने दर्द का नमुदार नहीँ करता,,
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जो कुछ मिला है उसी से खुश हुँ मै,
तेरे लिये भगवान से तकरार नहीँ करता,,
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पर कुछ तो बात है तेरी फितर्त मेँ 'ऐ जालिम,,
वरना मै तुझे चाहने की खता बार-बार नहीँ करता,,
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मै लफ्जोँ मेँ कुछ भी इजहार नही करता,
इसका मतलब ये नहीँ कि मै तुझे प्यार नहीँ करता...!