ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात “आख़री” होगी

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ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात “आख़री” होगी,
ना ज़ाने कौनसी रात “आख़री” होगी..
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से,
ना जाने कौनसी “मुलाक़ात” आख़री होगी..

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