सिंधी: पठान भाई तुम बाजार जा रहे हो तो मेरे लिए एक शीशा लेकर आना, जिसमे मैं अपना चेहरा देख सकूँ।
पठान: ठीक है।
पठान के बाजार से वापस आने के बाद:
सिंधी: भाई, ले आये शीशा?
पठान: नहीं भाई मिला ही नहीं, जो भी शीशा मैं उठाता था उसमे मेरा ही चेहरा दिखाई दे रहा था, आपका नहीं।