ख़िरद वालों से हुस्न ओ इश्क़ की तन्क़ीद क्या होगीख़िरद वालों से हुस्न ओ इश्क़ की तन्क़ीद क्या होगीन अफ़्सून-ए-निगह समझा न अंदाज़-ए-नज़र जानाशब्दार्थअफ़्सून-ए-निगह = नज़र का जाद
हुस्न वालों को क्या जरूरत है संवरने कीहुस्न वालों को क्या जरूरत है संवरने कीवो तो सादगी में भी क़यामत की अदा रखते हैं
हुस्न का क्या काम है सच्ची मोहब्बत में यारोहुस्न का क्या काम है सच्ची मोहब्बत में यारोजब आँख मजनू हो तो लैला हसीन ही लगती है
हुस्न भी थाहुस्न भी था, कशिश भी थीअंदाज़ भी था, नक़ाब भी थाहया भी थी, प्यार भी थाअगर कुछ ना था तो बस इकरार
इश्क़ की बंदगी दी है तो हुस्न की इबादत जरूरी हैइश्क़ की बंदगी दी है तो हुस्न की इबादत जरूरी हैइश्क़ से जीने की आस रहेगी और हुस्न से तड़प का सकून