कुछ रोज़ यह भी रंग रहा तेरे इंतज़ार काकुछ रोज़ यह भी रंग रहा तेरे इंतज़ार काआँख उठ गई जिधर बस उधर देखते रहे
वो रुख्सत हुई तो आँख मिलाकर नहीं गईवो रुख्सत हुई तो आँख मिलाकर नहीं गईवो क्यों गई यह बताकर नहीं गईलगता है वापिस अभी लौट आएगीवो जाते हुए चिराग़ बुझाकर नहीं गई
कौन कहता है कि दिल सिर्फ लफ्जों से दुखाया जाता हैकौन कहता है कि दिल सिर्फ लफ्जों से दुखाया जाता हैतेरी खामोशी भी कभी कभी आँखें नम कर देती है
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकताक्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकताआँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता